भोपाल गौरव

भोपाल गौरव

“क्या हाल है मियां ? बड़े दिनों बाद मुखातिब हो रहे ? जिक्र नहीं हो रिया आपका आजकल के अखबारों में ? कोई तकलीफ़ तो नहीं ?”
“कम से कम यूट्यूब पर वीडियो सीडि….यो..”(मुठ्ठी में कसी हुई कीपैड मोबाइल देख शब्द अधूरे रह गए । )

सलीम साब मुस्कुराते हैं, कुछ कहने को होते हैं फिर आगे बढ़ जाते हैं ।

“अरे! अरे! कम से कम अपना लगने वाला नंबर तो देते जाओ मियां “
(निवेदन कहें या आदेश जो भी हो स्वार्थ तो अपना ही था.)

“नाइन, फोर…….”

चश्में की पुरानी फ्रेम को पोंछते हुवे सलीम मियां बीएमसी की गाड़ी में सवार हो जाते हैं ।

सुलूक आज भी जस का तस है, लेकिन चेहरे के भाव कह रहे हो मानो फर्ज़ और ज़िम्मेदारी में कुछ तो जद्दोजहद चल रही है, परिणामस्वरूप भले फर्ज को विजयी घोषित कर दिया जाय लेकिन क्रिकेट की भांति ऐसे निर्णय में जिम्मेदारियों के प्रति डीआरएस की गुंजाइश भी तो बनती है ।

आज के दौर में जहां लोग मुर्दे को कंधे देने से लेकर, राह चलते जरूरतमंद लोगों की एक बेला के निवाले का प्रबंध कराने तक का श्रेय स्वयं से स्वयं को अर्पित कर फेसबुक,ट्विटर,व्हाट्सएप आदि जगहों पर चेंप देते है, इस दौर में यह व्यक्ति नि:स्वार्थ, निष्काम, निरंतर उसी जुनूनियत के साथ अग्रसर है जो आज से ३३ साल पहले हुआ करता था । सच कहे तो यह एक फरिश्ते का ही काम हो सकता है, जो लाचार, बेबस, सहमे हुए लोगों के दिलों में मजबूती, साहस और फौलाद भर दे ..
ऐसे नेक कार्य के लिए ऐसे खुदा के बंदे को लेन-देन का विचार कभी दिल में आया ही न होगा, ऐसा काम ही न था. सोचिए जरा ! जान की मूल्य कोई दे सकता है भला ?

ऐसा सोच ही रहा था तबतक मेरे सहकर्मी ने पूछ लिया ‘क्या बात है ब्रो, बड़े चिंतित दिख रहे हो ? कल ब्रीम ११ पर किसको कप्तान बना दिया ?’
मैंने ना में सिर हिलाया ।
‘अरे भाई बोलो भी, करोड़पति बनने के बाद तो तुम मिलोगे भी नहीं !’ बड़े विश्वास भरे स्वर में सहकर्मी ने पीठ पर थपेड़ मार दी ।
” गज्ज़बे बकलोल हो बे, हम(पूर्वांचल के हैं सो) अंगूरी लाल थोड़े न है !”
ये अंगूरी लाल कौन है ?
“मुंगेरी लाल के पप्पा !”
मैंने आंखे चौड़ी कर तीव्रता के साथ डांटा।
सहकर्मी समझ गया कि थपकी और थपेड़ में जमीं – आसमां का अंतर होता है ।
लेकिन था तो एक नंबर का बेलज्ज, निर्दयी ने क्षमा मांगने की जगह उसने बात को दूसरी तरफ मोड़ना उचित समझा ।
“अच्छा ! तुम्हे पता चला आज रोजनामचे में सांप दिखा था, लास्ट टाइम जैसा, पूरा करैत था करैत ! मोटा सा काला सा, बाप रे मैं तो डर गया यार “
“पता है भाई और ये भी पता है कि, लास्ट टाइम जैसे सलीम मियां ने ही उसे पकड़ा है!”
मैंने भिज्ञतापूर्वक कहा ।
“ओहो! सलीम भाई, वाह यादव जी वाह बड़ी जान पहचान है; सलीम मियां से आपकी ?”
उसने भौंहों का न्यून कोण बनाते हुवे टोन छेड़ी ।
मैंने बोलना उचित न समझा और न ही उसकी तरफ़ देखना ।
“अच्छा तुमने सलीम मियां का २८५ सांपों वाला वीडियो देखा है? कितना वायरल हुआ था यार पूरे इंटरनेट पर !”
उसने रोचकता से जानने की कोशिश की ।
मैंने तटस्थता बनाए रखा ।
“अरे कुछ बोलेंगे महाराज, या चोट ज्यादा गहरी है पीठ पर ?
उसने मौन को ललकारा …
मुझसे रहा नहीं गया, मैंने आवेश में आकर कह दिया, “जिसको तुम वायरल सांप वाला समझ रहे वो गुमनाम जिंदगी जी रहा आजकल, लास्ट टाइम इधर ही मिले थे यही कोई साल भर हुवे होंगे. कितना जोश, कितना उत्साह, स्फूर्ति के भंडार से भरा हुआ यह व्यक्ति तब पतले से तार पर फन फैलाए बैठे काले नाग की फुंफकार को देखता तो इतना भावविभोर हो उठता मानो वर्षों से कोई साधक अपनी अचूक साधना में लीन हो और अचानक से उसकी साधना पथ की कड़ियां मिलती जा रही हो जुड़ती जा रही हो… एक एक करके । सांप के इस विकराल रूप को देख बड़े बड़े धैर्यवान लोगों की भी धड़कने तेज हो जा रही थी लेकिन जैसे ही मदमस्त सांप ने अपने चक्षु खोले अपने पास सर्पमित्र सलीम मियां को देख लहराने लगा मानो कोई दुधमुंहा बच्चा विलख रहा हो, हुचक रहा हो, जिसने अभी अभी मां के ओझल होने और फिर से समीप आने पर माता के आंचल को फिर से जकड़ लिया हो और कह रहा हो कि आप कहा गए थे, मुझे एक पल के लिए आपसे दूर नहीं रहना आप मुझे स्वंय के साथ ले चलिए कहीं भी किधर भी आपके सिवाय मेरा कोई विकल्प ही नहीं ।”

” हां हां सही कह रहे मैंने फ़ोटो भी खिंचवाया था, 8 फिट से कम न होगा कालिया ..”
सहकर्मी ने मोबाइल गैलरी पर टैप करते ही टप से बोल पड़ा ।
‘भाई फोटो रहन दो, मैं तो इनके साथ घर गया था इनको और इनके सांप को छोड़ने के लिए ।’
मैंने श्रेय के भाव से शायद ही कहा होगा।
‘ सुना है वहां भी सांप है इनके पास तुमने देखा क्या ?’
आतुरता से पूछी गई बातें मुझे बिल्कुल पसंद नहीं फिर भी मैंने बोलना सही सोचा !
” भाई तुम्हें जानना क्या है, सांप के बारे में जानना हो तो गूगल कर लो अगर सलीम मियां के बारे में जानना हो तो इनके ऑफिस चले जा, वहां दीवारों पर लटकती वे तमाम तस्वीरें हैं जिसमे कई सीएम, डीएम, जीएम, एसपी, मंत्री, संतरी आदि भले प्रसिद्धि को दर्शा दें लेकिन जब बात वास्तविकता की हो तो चिढ़ाने से बाज नहीं आती ।”

“मैं कुछ समझा नहीं, तू इतनी गहराई से क्यों बता रहा ?”
उसने ‘ ठहरिए ! और धीमें चलिए !’ की तरफ़ इशारा किया।
मैंने ठिठकते हुए कहा – ” तुम्हे क्या लगता है सीएम/डीएम, मंत्री के साथ फ़ोटो खिंचवाने से, आश्वासन भर मिल जाने से मदद मिल ही जाती होगी ?”
“शायद हां !”
“बिल्कुल कम संभावना है।”
मैंने आश्वस्त करते हुआ कहा ।
” तुम जो सलीम मियां को देख रहे, वो सलीम आज ३३ सालों से सवा दो लाख सांपों को भोपाल के आस पास के इलाकों से पकड़ पचमढ़ी के जंगलों में प्रत्येक सप्ताह छोड़ने जाया करते हैं या यूं कहे उनके घर पहुंचाने जाते हैं वो भी २३ हजार के पगार पर जो कि बीएमसी (भोपाल नगर निगम) में हाजिरी देने के बाद मिलती है । अन्यथा कोई देने से रहा और ये लेने से रहे, जिनके घरों में सांप निकल आते है वो इनके आने और जाने का प्रबंध कर दे वही इनके लिए श्रमशुल्क है, वैसे फर्ज अदायगी में ऐसे बंदे बिना पैर के भी दौड़ पड़ते हैं अगर ख़बर तैर कर कान तक पहुंच जाए ।”
मैंने एक ही सांस में कह डाला मानो सीने में टीस भरी हो दुनिया के दिखावेपन और बड़बोलेपन के खिलाफ़ ।

सहकर्मी ने हिचकिचाते हुए पूछा – ‘ तो क्या होना चाहिए ?’
मैंने अधूरी बात को अपने मन के भाव का पूरक मान सुझाव देना जारी रखा – ‘तुम्हे पता है जो व्यक्ति ३३ सालों से निरंतर एक ही कार्य को सफलता पूर्वक जारी रखे वो उस कार्य में निपुण हो ही जाता है या यूं कहे तो वो विशेषज्ञ से कम नहीं होता, अगर सरकार या कोई संस्थान चाहे तो ऐसे महारथी व्यक्तियों के अनुभव का प्रचार – प्रसार अपने विद्यालयों, संस्थानों, क्लबों आदि में ट्यूटोरियल, व्याख्यान आदि के रूप में कर सकती है, सलीम मियां जैसे लोग समाज में व्याप्त अंधविश्वास को तोड़कर सामाजिक कुरीतियों से भी आजाद कराने का काम करते हैं जैसे कि- सांप का दूध पीना, संपेरे द्वारा बेजुबान नागों के विषदंत और जबड़े को तोड़ लोगों के गले में डाल आशीर्वाद प्राप्त करने का ढोंग कर पैसे ऐंठना आदि । मेरा मानना है कि, ख़ासकर हमें और सरकार को ऐसे विलक्षण प्रतिभा के धनी सर्पमित्रों और अन्य आपातकालीन स्थिति में लोहा लेने वाले फरिश्तों को न चाहते हुवे भी समय समय पर मदद करनी चाहिए । उनके उत्थान का भी हक बनता है ।”

अपने इस विचार पर सहकर्मी के साथ मुंझे स्वयं को विस्मयपूर्वक स्थिति में जान पड़ा मालूम हुआ क्योंकि आज से पहले मैंने ऐसी बोधात्मक बातें शायद ही कर पाया हूं वो भी इतने धाराप्रवाह वेग के साथ । सहकर्मी मुझे और मैं सहकर्मी को देखे जा रहे हैं, मौन ।

अभी भावुक क्षण का माहौल हम दोनों पर हावी होता तबतक अचानक से सहकर्मी के मोबाइल पर उसके मित्र का फ़ोन आता है; स्पीकर ऑन है …
(उधर से दूसरा व्यक्ति डांटता है) कि, “सांप के साथ ली गई सामूहिक और इंडिविजुअल तस्वीरें तुमने ग्रुप में साझा नहीं की अगर उसके पास बढ़िया कैमरे वाला फ़ोन होता तो अबतक वो किसी से रिक्वेस्ट नही कराता, स्टेट्स लगाना है; भेजो जल्दी, फटाफट, तुरंत ।”

फ़ोन कटता है, सहकर्मी गैलरी से सारी फ़ोटो डीलिट करता है और सेव करता है 942560** मोहम्मद सलीम खान सांप वाला ।

“क्या हाल है मियां ? बड़े दिनों बाद मुखातिब हो रहे ? जिक्र नहीं हो रिया आपका आजकल के अखबारों में ? कोई तकलीफ़ तो नहीं ?”
“कम से कम यूट्यूब पर वीडियो सीडि….यो..”(मुठ्ठी में कसी हुई कीपैड मोबाइल देख शब्द अधूरे रह गए । )

सलीम साब मुस्कुराते हैं, कुछ कहने को होते हैं फिर आगे बढ़ जाते हैं ।

“अरे! अरे! कम से कम अपना लगने वाला नंबर तो देते जाओ मियां “
(निवेदन कहें या आदेश जो भी हो स्वार्थ तो अपना ही था.)

“नाइन, फोर…….”

चश्में की पुरानी फ्रेम को पोंछते हुवे सलीम मियां बीएमसी की गाड़ी में सवार हो जाते हैं ।

सुलूक आज भी जस का तस है, लेकिन चेहरे के भाव कह रहे हो मानो फर्ज़ और ज़िम्मेदारी में कुछ तो जद्दोजहद चल रही है, परिणामस्वरूप भले फर्ज को विजयी घोषित कर दिया जाय लेकिन क्रिकेट की भांति ऐसे निर्णय में जिम्मेदारियों के प्रति डीआरएस की गुंजाइश भी तो बनती है ।

आज के दौर में जहां लोग मुर्दे को कंधे देने से लेकर, राह चलते जरूरतमंद लोगों की एक बेला के निवाले का प्रबंध कराने तक का श्रेय स्वयं से स्वयं को अर्पित कर फेसबुक,ट्विटर,व्हाट्सएप आदि जगहों पर चेंप देते है, इस दौर में यह व्यक्ति नि:स्वार्थ, निष्काम, निरंतर उसी जुनूनियत के साथ अग्रसर है जो आज से ३३ साल पहले हुआ करता था । सच कहे तो यह एक फरिश्ते का ही काम हो सकता है, जो लाचार, बेबस, सहमे हुए लोगों के दिलों में मजबूती, साहस और फौलाद भर दे ..
ऐसे नेक कार्य के लिए ऐसे खुदा के बंदे को लेन-देन का विचार कभी दिल में आया ही न होगा, ऐसा काम ही न था. सोचिए जरा ! जान की मूल्य कोई दे सकता है भला ?

ऐसा सोच ही रहा था तबतक मेरे सहकर्मी ने पूछ लिया ‘क्या बात है ब्रो, बड़े चिंतित दिख रहे हो ? कल ब्रीम ११ पर किसको कप्तान बना दिया ?’
मैंने ना में सिर हिलाया ।
‘अरे भाई बोलो भी, करोड़पति बनने के बाद तो तुम मिलोगे भी नहीं !’ बड़े विश्वास भरे स्वर में सहकर्मी ने पीठ पर थपेड़ मार दी ।
” गज्ज़बे बकलोल हो बे, हम(पूर्वांचल के हैं सो) अंगूरी लाल थोड़े न है !”
ये अंगूरी लाल कौन है ?
“मुंगेरी लाल के पप्पा !”
मैंने आंखे चौड़ी कर तीव्रता के साथ डांटा।
सहकर्मी समझ गया कि थपकी और थपेड़ में जमीं – आसमां का अंतर होता है ।
लेकिन था तो एक नंबर का बेलज्ज, निर्दयी ने क्षमा मांगने की जगह उसने बात को दूसरी तरफ मोड़ना उचित समझा ।
“अच्छा ! तुम्हे पता चला आज रोजनामचे में सांप दिखा था, लास्ट टाइम जैसा, पूरा करैत था करैत ! मोटा सा काला सा, बाप रे मैं तो डर गया यार “
“पता है भाई और ये भी पता है कि, लास्ट टाइम जैसे सलीम मियां ने ही उसे पकड़ा है!”
मैंने भिज्ञतापूर्वक कहा ।
“ओहो! सलीम भाई, वाह यादव जी वाह बड़ी जान पहचान है; सलीम मियां से आपकी ?”
उसने भौंहों का न्यून कोण बनाते हुवे टोन छेड़ी ।
मैंने बोलना उचित न समझा और न ही उसकी तरफ़ देखना ।
“अच्छा तुमने सलीम मियां का २८५ सांपों वाला वीडियो देखा है? कितना वायरल हुआ था यार पूरे इंटरनेट पर !”
उसने रोचकता से जानने की कोशिश की ।
मैंने तटस्थता बनाए रखा ।
“अरे कुछ बोलेंगे महाराज, या चोट ज्यादा गहरी है पीठ पर ?
उसने मौन को ललकारा …
मुझसे रहा नहीं गया, मैंने आवेश में आकर कह दिया, “जिसको तुम वायरल सांप वाला समझ रहे वो गुमनाम जिंदगी जी रहा आजकल, लास्ट टाइम इधर ही मिले थे यही कोई साल भर हुवे होंगे. कितना जोश, कितना उत्साह, स्फूर्ति के भंडार से भरा हुआ यह व्यक्ति तब पतले से तार पर फन फैलाए बैठे काले नाग की फुंफकार को देखता तो इतना भावविभोर हो उठता मानो वर्षों से कोई साधक अपनी अचूक साधना में लीन हो और अचानक से उसकी साधना पथ की कड़ियां मिलती जा रही हो जुड़ती जा रही हो… एक एक करके । सांप के इस विकराल रूप को देख बड़े बड़े धैर्यवान लोगों की भी धड़कने तेज हो जा रही थी लेकिन जैसे ही मदमस्त सांप ने अपने चक्षु खोले अपने पास सर्पमित्र सलीम मियां को देख लहराने लगा मानो कोई दुधमुंहा बच्चा विलख रहा हो, हुचक रहा हो, जिसने अभी अभी मां के ओझल होने और फिर से समीप आने पर माता के आंचल को फिर से जकड़ लिया हो और कह रहा हो कि आप कहा गए थे, मुझे एक पल के लिए आपसे दूर नहीं रहना आप मुझे स्वंय के साथ ले चलिए कहीं भी किधर भी आपके सिवाय मेरा कोई विकल्प ही नहीं ।”

” हां हां सही कह रहे मैंने फ़ोटो भी खिंचवाया था, 8 फिट से कम न होगा कालिया ..”
सहकर्मी ने मोबाइल गैलरी पर टैप करते ही टप से बोल पड़ा ।
‘भाई फोटो रहन दो, मैं तो इनके साथ घर गया था इनको और इनके सांप को छोड़ने के लिए ।’
मैंने श्रेय के भाव से शायद ही कहा होगा।
‘ सुना है वहां भी सांप है इनके पास तुमने देखा क्या ?’
आतुरता से पूछी गई बातें मुझे बिल्कुल पसंद नहीं फिर भी मैंने बोलना सही सोचा !
” भाई तुम्हें जानना क्या है, सांप के बारे में जानना हो तो गूगल कर लो अगर सलीम मियां के बारे में जानना हो तो इनके ऑफिस चले जा, वहां दीवारों पर लटकती वे तमाम तस्वीरें हैं जिसमे कई सीएम, डीएम, जीएम, एसपी, मंत्री, संतरी आदि भले प्रसिद्धि को दर्शा दें लेकिन जब बात वास्तविकता की हो तो चिढ़ाने से बाज नहीं आती ।”

( मैं और सलीम साब; फोटो खिचाते हुए। )

“मैं कुछ समझा नहीं, तू इतनी गहराई से क्यों बता रहा ?”
उसने ‘ ठहरिए ! और धीमें चलिए !’ की तरफ़ इशारा किया।
मैंने ठिठकते हुए कहा – ” तुम्हे क्या लगता है सीएम/डीएम, मंत्री के साथ फ़ोटो खिंचवाने से, आश्वासन भर मिल जाने से मदद मिल ही जाती होगी ?”
“शायद हां !”
“बिल्कुल कम संभावना है।”
मैंने आश्वस्त करते हुआ कहा ।
” तुम जो सलीम मियां को देख रहे, वो सलीम आज ३३ सालों से सवा दो लाख सांपों को भोपाल के आस पास के इलाकों से पकड़ पचमढ़ी के जंगलों में प्रत्येक सप्ताह छोड़ने जाया करते हैं या यूं कहे उनके घर पहुंचाने जाते हैं वो भी २३ हजार के पगार पर जो कि बीएमसी (भोपाल नगर निगम) में हाजिरी देने के बाद मिलती है । अन्यथा कोई देने से रहा और ये लेने से रहे, जिनके घरों में सांप निकल आते है वो इनके आने और जाने का प्रबंध कर दे वही इनके लिए श्रमशुल्क है, वैसे फर्ज अदायगी में ऐसे बंदे बिना पैर के भी दौड़ पड़ते हैं अगर ख़बर तैर कर कान तक पहुंच जाए ।”
मैंने एक ही सांस में कह डाला मानो सीने में टीस भरी हो दुनिया के दिखावेपन और बड़बोलेपन के खिलाफ़ ।

सहकर्मी ने हिचकिचाते हुए पूछा – ‘ तो क्या होना चाहिए ?’
मैंने अधूरी बात को अपने मन के भाव का पूरक मान सुझाव देना जारी रखा – ‘तुम्हे पता है जो व्यक्ति ३३ सालों से निरंतर एक ही कार्य को सफलता पूर्वक जारी रखे वो उस कार्य में निपुण हो ही जाता है या यूं कहे तो वो विशेषज्ञ से कम नहीं होता, अगर सरकार या कोई संस्थान चाहे तो ऐसे महारथी व्यक्तियों के अनुभव का प्रचार – प्रसार अपने विद्यालयों, संस्थानों, क्लबों आदि में ट्यूटोरियल, व्याख्यान आदि के रूप में कर सकती है, सलीम मियां जैसे लोग समाज में व्याप्त अंधविश्वास को तोड़कर सामाजिक कुरीतियों से भी आजाद कराने का काम करते हैं जैसे कि- सांप का दूध पीना, संपेरे द्वारा बेजुबान नागों के विषदंत और जबड़े को तोड़ लोगों के गले में डाल आशीर्वाद प्राप्त करने का ढोंग कर पैसे ऐंठना आदि । मेरा मानना है कि, ख़ासकर हमें और सरकार को ऐसे विलक्षण प्रतिभा के धनी सर्पमित्रों और अन्य आपातकालीन स्थिति में लोहा लेने वाले फरिश्तों को न चाहते हुवे भी समय समय पर मदद करनी चाहिए । उनके उत्थान का भी हक बनता है ।”

अपने इस विचार पर सहकर्मी के साथ मुंझे स्वयं को विस्मयपूर्वक स्थिति में जान पड़ा मालूम हुआ क्योंकि आज से पहले मैंने ऐसी बोधात्मक बातें शायद ही कर पाया हूं वो भी इतने धाराप्रवाह वेग के साथ । सहकर्मी मुझे और मैं सहकर्मी को देखे जा रहे हैं, मौन ।

अभी भावुक क्षण का माहौल हम दोनों पर हावी होता तबतक अचानक से सहकर्मी के मोबाइल पर उसके मित्र का फ़ोन आता है; स्पीकर ऑन है …
(उधर से दूसरा व्यक्ति डांटता है) कि, “सांप के साथ ली गई सामूहिक और इंडिविजुअल तस्वीरें तुमने ग्रुप में साझा नहीं की अगर उसके पास बढ़िया कैमरे वाला फ़ोन होता तो अबतक वो किसी से रिक्वेस्ट नही कराता, स्टेट्स लगाना है; भेजो जल्दी, फटाफट, तुरंत ।”

फ़ोन कटता है, सहकर्मी गैलरी से सारी फ़ोटो डीलिट करता है और सेव करता है 942560** मोहम्मद सलीम खान सांप वाला ।

@abhishekyadavgzp