‘अरे चैतू ! ये मटका कौन रख गया बेवकूफ ?’ पीठासीन महोदय ने डांट कर पूछा ।
चैतू जो साहब के नाश्ता पानी की जुगत में दोपहर से नदारद था उसने सहमते हुए कहा ‘जी सर हम नहीं थे तब, लगता है; ऊ नगर निगम वाले चसमुलिया बाबू जी ने रखवाया है, लोगों के पानी वानी….. ‘
चैतू ने साहब के लिए चाय पेश की ।
‘ हद है यार, सिपाही को बुलाओ जरा !’ पी.ओ. साहब ने कड़क आवाज में भड़कते हुए कहा ।
चैतू जो निजी पहरेदार है पाठशाला का, दुशाला ओढ़े सरकारी पहरेदार को आवाज लगाता है ‘सर आपको सर बुला रहे हैं ।’
‘जी श्रीमान जी आदेश !’ सिपाही पैर पटकते हुए तन जाता है सात इंच ऊपर।
‘तुम्हें जानकारी है तुम कहां खड़े हो अभी ?’ साहब चढ़ जाते हैं साढ़े सात इंच अपने पंजो पर ।
सिपाही सावधान मुद्रा में मुठ्ठी भींच लेता है ।
‘महानुभाव जहां खड़े हैं आप, उसे मतदान केंद्र कहते है जिसे आदर्श बूथ का तमगा मिला हुआ है कड़ी – मशक्कत के बाद और अगले 24 घंटे में आप को इसे सार्थक सिद्ध करना है जो कि मुझे मुमकिन तो नहीं लग रहा है अभी फिर भी उम्मीद करते हैं चुनाव संबंधी ट्रेनिंग मिली होगी आपको ।’ साहब गरमा जाते हैं केतली की तरह । (आये दिनों खुफिया एजेंसियों को जिस डाटा लीक का खतरा लगा रहता है अनवरत; ठीक उससे ३६ ग्राम ज्यादा खौफ उस जाड़े की मध्यरात्रि को मूर्तिवत खड़े सरकारी पहरेदार को सता रहा था ।)
‘तुम्हें पता होना चाहिए, मतदान केंद्र से १०० मीटर की परिधि में कोई भी चुनाव चिन्ह संबंधी चिन्हों का प्रदर्शन/उपयोग नहीं होना चाहिए, फिर ये मटका, झाड़ू, साइकिल और …. ‘
सिपाही झट से हथेलियों को अपनी जेब में छुपा लेता है कहीं साहेब आदेश न कर दें कि तुम्हें इन्हें भी हटाना होगा ।
साहब, सिपाही की ओर देखने से गुरेज़ करते हैं और बढ़ जाते हैं किसी मित्र के आह्वाहन पर, ‘देर हो रही है सर, सुबह आना भी तो है !‘ आगंतुक ने साहब को फटफटी की ओर इशारा करते हुए कहा । साहब चाय की चुस्की के साथ मुस्कियाने की झूठी कोशिश करते हैं और लद जाते हैं फटफटिया पर । साहब के ओझल होने तक सिपाही यथावत सावधान मुद्रा के जड़त्व को तोड़कर आसमान की ओर देखता है, आंखे बंद करता है और गहरी सांस लेता है ।
”सर ताला लगा रहें हैं, भीतर आना है तो आ जाइए, लगे तो चाभी नियरे आलमारी में रखी है, महंगू दे देगा आपको ।” चैतू ने कर्तव्य निर्वहन का परिचय देते हुए दरवाजा बंद करता है ‘खटाक’ ।
सिपाही बिना किसी आदेश के विश्राम न होते हुए सीधे आगे बढ़ की कार्यवाही पर मतदान केंद्र के मुख्य प्रवेश द्वार तक पहुंचता है जहां उसे एक विराट सिपाही से भेंट होती है जो अनगिनत सालों से पहरेदारी कर रहा है तटस्थ, सुदृढ़, सजीव, अडिग । जिसकी बुनियाद फौलादी है, जो जमीन की गहराइयों में छेद और आसमान की ऊंचाईयों को भी भेद सकती है । चहुं दिशाओं में हाथ फैलाए, अंतरिक्ष का आलिंगन करती हुई इसकी शाखाएं मानों अपने आप को सर्वस्व न्यौछावर करने को आतुर हो रहीं है । तेज हवाओं का झोंका पेंडुलम की भांति हवा में लहराते हुवे इसके मौन को तोड़ने की असफल चेष्टा करता है, जिससे भयानक नाद उत्पन्न होता है लगातार, अनवरत…लेकिन समय की मार इस वयोवृद्ध सिपाही पर स्पष्ट देखी जा सकती हैं जी हां ये बहुरूपिया सिपाही जो अभी बरगद का भेष धारण किए हुए है अब उसकी जड़े बूढ़े व्यक्ति की हड्डियों की भांति जमीन से बाहर हो चुकी हैं, तना मानों बिना आंत का पेट जिसमें घास-फूस, कुश-काँट बहरहाल दो पिल्ले और उनकी मां अपने – अपने सिर को पैरों में छिपाए हुए एक दूसरे की प्रतिलिपियाँ उतार रहे हैं, वैसे ही बरगद की निर्बल शाखाएं एक दूसरे की पूरक बनी हुई हैं ।
रात्रि का तीसरा पहर शुरू होता है । मौसम का उन्माद और जाड़े की सेंकाई बढ़ रही है हौले हौले, सी – सी की आवाज करते हुए झींगुर अपने ड्यूटी पर पाबंद हैं और उधर सरकारी सिपाही भी । निर्वात सा माहौल है, सिपाही बरगद के नीचे बने नवनिर्मित चबूतरे पर विराजमान है, जिसका हाल ही में कायाकल्प यहीं के किसी भावी उम्मीदवार ने किया हुआ है । सिपाही मौन है, अचेत है, कल्पनाशील है अपने अतीत के उन दिनों में जहां उसके बाबा सुनाया करते थे कि, ‘किसी जमाने में बरगद के नीचे उम्मीदवारों के समर्थन में हवा में हाथ भर हिला देने मात्र के बहुमत से उसका चयन हो जाता था । लोग एक दूसरे के कानों में बोलकर भी अपना समर्थन जता देते थे यहां तक कि अधिकांशतः निर्विरोध ही चुनाव होते थें ।’ सिपाही सोचता है कितनी सरल व्यवस्था रही होगी, निष्पक्ष, प्रत्यक्ष और कार्यप्रणाली पर आधारित । तभी अंतःकरण से आवाज आती है ऐसी व्यवस्था का क्या लाभ जहां वर्ण व्यवस्था में ऊंच – नीच, तिरस्कार की भावना हो, कुछ गिने चुने लोगों में ही मत प्रयोग का अधिकार हो जो प्रलोभन और स्वार्थ में किसी निरंकुश, दुष्चरित्र व्यक्ति का चुनाव कर दें । इधर सिपाही की ऊहापोह स्थिति खत्म नहीं होती उधर चौथा पहर दस्तक दे देता है ।
‘क्या सर, सोए नहीं आप !’
(सिपाही की एकाग्रता भंग होती है और पीछे देखता है ।)
‘महंगूआ नाम है हमार, बिहार से हैं; चैतु हमसे जेठ है दू बरस !’
‘छठ पर गांव नहीं गए आप लोग ?’
सिपाही ने हथेलियों का घर्षण करते हुए पूछा !
‘हम लोग गांव जाते तो इहां इलेक्शन कौन कराता सर ?’
महंगू की हाजिर जवाबी पर दोनों एक दूसरे को देख पौने दो इंच होंठ हिला देते हैं ।
भोर हो गई है, सन्नाटा अभी भी पसरा हुआ है, मंहगू बतीया रहा है सिपाही से सट कर, सिपाही बढ़ जाता है मंहगू से हट कर; क्योंकि महंगू दतुवन करता है कभी कभी और सिपाही ब्रश घसता है रेगुलर । नित्य कर्म से निवृत्त हो कुछ लोग अपनी साधना में लगे हुए हैं जो उन्हें कुछ दिवस पहले प्रशिक्षण में मंत्र स्वरूप दिया गया था, सिपाही भी उनमें से एक था ।
शनै: शनै: चहल पहल बढ़ रही है शायद मतदान केंद्र का ताप भी, पीओ साहब के साथ लगीं दोनो महिलाकर्मी फुर्ती के साथ अपने अपने स्थान पर पहुंचने के लिए दौड़ लगाती हैं ताकि पीओ साहब चवन्नियां मुस्की के साथ इनका आवाभगत कर सकें और आदेश कर सकें कि “समय को आज से पी 1 और पी 2 बुलाया जाए ।” लेकिन हाय रे करम ! पीओ साहब तो कहीं अज्ञातवास में लीन है साधक की तरह, और मैडम लोग खिन्न हैं यहां बाधक की तरह । जिस प्रकार स्नाइपर अपने वेपन पार्ट्स को असेंबल करता है बारीकी से ठीक उससे साढ़े चार एमएल ज्यादा यहां की कार्यवाही चल रही थी, मगर परिणाम पानी के घोल में शक्कर के अणु तराशने जितना निकलता ।
प्रवेश द्वार पर गहमा गहमी मची हुई है । पता चला है, अनाधिकृत प्रवेश करने की कोशिश में सिपाही ने दो लोगों को दौड़ा लिया है बूथ से। इधर चैतू आंख मलते हुए उबासी के साथ अपने अलसाये बदन को तोड़ देता है कई किश्तों में, हड्डी चटकने की आवाज आती है सो अलग ‘हइई भगवान होssss’ उधर पीओ साहब फ़ोन नहीं उठा रहे मैडम लोगों का बुरा हाल हुआ जा रहा कहीं सेक्टर मजिस्ट्रेट अवतार न ले लें ।
मतदान केंद्र पर कार आती देख सिपाही चौकन्ना हो जाता है और दूर से ही गाड़ी को रोकने का इशारा करता है, तब तक गाड़ी पहुंच जाती है वयोवृद्ध सिपाही बरगद के नीचे चबूतरे के पास और पालकी की भांति उन्हीं कहारों ने पीओ साहब को उतारा जिन्हें कुछ देर पहले सिपाही ने चहेट दिया था । सिपाही पैर पटकता है और तन जाता है 7 इंच लगभग । साहब देखने से गुरेज करते हैं, बढ़ते हैं दो कदम, फिर वापस आते हैं और अपने कहारों की तरफ़ इशारा करके सुमधुर राग में अलापते हैं – “इन्हें यहां से जाने के लिए तुम्हें किसने कहा ? पता है कुछ ? एजेंट महोदय को तुमने ऐसे…… ” सिपाही ने मौन रहना उचित समझा । “ये आम लोग नहीं है, ये महाभारत के संजय हैं, साथ ही पार्टियों के संवाददाता भी, जिस रथ रूपी सिस्टम को आज के सारथी रूपी राजनेता विश्वास रूपी चाबुक से हांकते है वही चाबुक इनके लिए जादू की छड़ी होती है, जादू की छड़ी । अच्छा हुआ ये हमारे साले हैं वरना तुम तो…… ।” सिपाही के ऊपर अपार कृतघ्नता प्रकट करते हुए पीओ साहब घूरते रहते हैं कुछ देर तक, एकटक, लगातार, बार- बार, निरंतर ।
सिपाही यथावत सावधान मुद्रा के जड़त्व को तोड़कर आसमान की ओर देखता है, आंखे बंद करता है और गहरी सांस लेता है ।
उद्घोषणा होती है – ‘सुबह के 7 बज गए हैं मतदान शुरू हो चुका है आप लोग क्रमशः मतदान कर सकते हैं ।’ मतदान केंद्र एक प्रतिष्ठित रहवासियों के बीच का स्थापित केंद्र है सो शांतिपूर्ण मतदान संपन्न होने के अधिक आसार दिखते हैं लेकिन इतनी शांति जहां 9 बजने में बमुश्किल 10 मिनट ही बचे हों और शुद्ध रूप से वोटों की बोहनी भी न हुई हो यह स्थिति अबोध है, अपाच्य है, असह्य है । धीरे – धीरे समय के साथ – साथ लोगों का भी घूमना टहलना बढ़ता गया और एकाएक भीड़ सी हो गई । सिपाही ने फ़ौरन पुरुष और महिला वर्ग की कतारें अलग करा दी, अचानक से एक महोदय ने झल्लाते हुए कहा – ‘व्हाट अ पूअर सिस्टम, देयर इज नो रिलीफ फॉर सीनियर सिटीजन !’ सिपाही अंग्रेजी के दो शब्द सीनियर सिटीजन ही पकड़ सका; उसने तत्काल अपने आप को महोदय के समक्ष पेश किया । महोदय तपाक से बोल पड़े – “पचासों बार सेक्टर मजिस्ट्रेट रहा हूं ; एंड सो मेनी टाइम्स ईआरओ, डीइओ, सीईओ बट ऐसी व्यवस्था आई डॉन्ट लाइक !” सिपाही ने सूझ बूझ दिखाते हुए महोदय को कतार में सर्वप्रथम, सर्वोपरि, सर्वसम्मति से ला खड़ा कर दिया । सिपाही ने कतार में सभी से निवेदन किया कि वरिष्ठ नागरिक अपने आप आगें चले जावें और बाकी लोग उनकी मदद करें । एक डबल चलीसा पार व्यक्ति ने पोपली आवाज में गरज कर कहा – ‘’बेटा शरीर के आकार के लिए पार्कों में घंटो खड़ा रह सकता हूं तो देश की सरकार के लिए क्यों नहीं !” शायद आवाज आगे खड़े हुए ‘सीईओ,डीईओ, इआरओ और पचासों बार के मजिस्ट्रेट‘ के कानों तक नहीं पहुंच पाई वरना कोई न कोई हरकत जरूर होती, सोचिए भला मैग्मा के सैलाब को धरती की परत रोक सकती है क्या ? खैर, बच्चों के साथ बैठने वाले व्यक्ति का स्वभाव बच्चों जैसा ही होता है सरल, उत्साही और जिज्ञासु ।
जैसे ही लोग अपनी शख्सियत प्रकट करतें वैसे ही सिपाही आभार व्यक्त कर देता है, हाथ मिलाना, मुस्कुरा कर सिर हिलाना, सैल्यूट भी ठोंक देता है कई कई बार । सिपाही को अब लगने लगा है कि, मतदाता पर्ची पर नाम से नहीं पदनाम से अंकन होना चाहिए और जिनके पदनाम में कोई ख़ास दम खम न हो उनके लिए रिजर्व टाइम में शाम को ठूंस देना चाहिए 20 मिनट के लिए जी हां 20 मिनट । बूथ पर अपने पैरेंट्स के साथ आए दुधमुंहे बच्चों का उमंग देखने लायक है, उत्साह जोश से लबरेज ये नटखट पार्टी अपने स्कूल कार्ड दिखाकर बस बैंगनी अमिट स्याही को अपने दसों उँगलियों में छांप लेना चाहती हैं । वहीं दूसरी तरफ यंग जेनरेशन की टोली वोटर्स सेल्फी प्वाइंट न दिखने पर मन ही मन चिढ़ने लगती हैं और स्याही लगी उंगली के साथ इशारा कर देती हैं महंगू को, महंगू गरिया देता है “बेहुद्दा कहीं के ।” कुछ उंगलियां घूंघट की ओट से भी दिखती है लेकिन अब मंहगू गरियाता नही है शरमा जाता है पाव भर । बूढ़े लोग भी फ़ोटो खींचते खिंचाते है, लोग एक दूसरे का समर्थन करते हैं सिपाही देखकर खुश हो जाता है ।
दिवसावसान का समय हो चुका है, मतदाता विरले ही आ रहे हैं, सिपाही पिल्लों को दुलारने-पुचकारने में व्यस्त हो गया है, तभी अचानक से दोनों महिलाकर्मी कमर पर हाथ रख, कराहने की मद्धम आवाज के साथ, पैरों को घसीटते हुए चली आ रही हैं पुराने सिपाही के नीचे बने हुए चबूतरे के पास पहुँचती हैं और फैल जाती हैं महामारी की तरह ।
पी 1 – ‘मैने न जाने कितने चुनाव कराये होंगे लेकिन इतना हरा.., बे.., घ, ग, च,… अधिकारी मैंने अपनी 26 साल की उमर में अब तक न देखा होगा ।‘ (पी 2 आंखे मूंद कर ना में सिर हिलाती है लेकिन दिखने में लगता है कि पुरजोर समर्थन करती है, कहना जल्दबाजी होगा कि समर्थन उमर के बारे में था या अधिकारी के ।)
पी 2 – ‘काम न करना पड़े इसलिए कलमुंहे ने अपना चश्मा ही फोड़ लिया और कहता है कि मुझे चश्में के बिना चीजें चिंगारी दिखती हैं ।’
पी 1 – ‘अजी झूठ बोलता है निकम्मा सरासर झूठ ! चश्मा तो घर से ही फूटा था, देखी नहीं फ्रेम नहीं था एक तरफ और तो और पोहा में से भकाभक सेंगदाना बीन कर ठूंस रहा था और कहता है कि चिंगारी…’
पी 2 – ‘सही कहती हो दीदी ! अभी तक उस गंवार ने लिफाफों के प्रपत्र तक नहीं बना पाया, लिफाफे के भीतर लिफाफे देखकर तो जी बैठा जा रहा और वो है कि मजे में दीवार से चिपक कर आंखे दिखाता है ।’
सिपाही देखता है, सुनता है, और बढ़ जाता है ।
उद्घोषणा होती है – ‘आखिरी के आधे घंटे बचे हैं जिन्हें मतदान करना है वे शीघ्र ही कैंपस के भीतर आ जावे अन्यथा मतदान से वंचित रह जावेंगे ।’ तेज आवाज सुनकर पिल्लों की मां भाग जाती है, मतदान के भीतर से हो हल्ला शुरू हो चुका है, शायद किसी महिला की चीखने चिल्लाने की आवाज है, सिपाही दौड़ पड़ता है पर भीतर का नजारा कुछ अलग और आश्चर्यजनक जान पड़ता है, पीओ साहब महिलाओं से निवेदन, प्रार्थनाएं, और दंडवत हुए जा रहे और महिलाएं हैं कि, लम्बी लम्बी साँसे खींची जा रही हैं मानो मां चंडी प्रत्यक्ष उपस्थित हो । सिपाही बिना कुछ सोचें आगे बढ़ जाता है, आंखे बंद करता है और गहरी सांस लेता है ।
रात्रि के दूसरे पहर की शुरुवात होने को हैं, दूसरे पोलिंग बूथ की पार्टियों आ पहुंची हैं मदद के लिए । कोई चपटा लगा रहा, कोई बी यू, सी यू पर सील, कोई नस्तीबद्ध करने में जुटा है, कोई लिफाफों की जमावट में व्यस्त है और इधर पीओ साहब किसी अन्य व्यक्ति से फोन पर मान-मुनौव्वल में गले जा रहे हैं, झाग की तरह ।आख़िरकार, कछुए की चाल की भांति मतदान सामग्रियों को रात्रि के मध्य पहर तक समेट कर, पार्टियां स्ट्रॉन्ग रूम की ओर कूच करती हैं ।
सुबह के 08 बजने को है । सिपाही का फ़ोन बजता है, आदेश हुआ है तत्काल अपनी उपस्थिति दर्ज करायें । सिपाही आसमान की ओर देखता है, आंखे बंद करता है और गहरी सांस लेता है ।
अभिषेक यादव